दिवाली, हमने तुझे अंधेरों में रौशनी के दिए जलाते देखा है, ज़िन्दगियों में खुशियों की बहार लाते देखा है, एक आशा की लौ को जगाते हुए देखा है, किसी की नम आँखों में तो कभी छोटी खुशियों की फुहारों में, कहीं भूक में तो कहीं अनाज की मिठास में, धरती पर बहती हवाओं में, समंदर की लहरों के उफानों में, एक झुग्गी की छत से लेकर महलों की दीवारों में, रिश्तों में, अपनों में, परायों में, चमकते सितारों में, छुपे हुए बादलों के गलियारों में, हमने तुझे, या शायद तेरी ही जैसी एक रौशनी का इंतज़ार करते देखा है - सागर शर्मा
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